उत्तर प्रदेश सरकार ने पर्यावरण संरक्षण और जल संवर्धन की दिशा में एक विशाल कदम उठाया है। ‘वन महोत्सव’ अभियान के तहत, राज्य में गंगा, यमुना और गोमती सहित प्रमुख नदियों के किनारे 3.5 करोड़ पौधे लगाने का एक महत्वाकांक्षी अभियान शुरू किया गया है। इस महाअभियान का दोहरा उद्देश्य है – राज्य के हरित आवरण को बढ़ाना और भूजल स्तर को रिचार्ज करना।
नदियों के किनारे वृक्षारोपण क्यों?
नदियों के किनारे वृक्षारोपण करना एक बहुआयामी रणनीति है, जिसके कई पर्यावरणीय लाभ हैं:
- भूजल रिचार्ज: पेड़ों की जड़ें मिट्टी को बांधे रखती हैं और वर्षा जल को भूजल स्तर तक पहुंचाने में मदद करती हैं। यह नदियों के किनारे विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये क्षेत्र अक्सर भूजल के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।
- मिट्टी का कटाव रोकना: नदी के किनारे के पेड़ों की जड़ें मिट्टी को कटाव से बचाती हैं, जो बाढ़ और सूखे दोनों के दौरान महत्वपूर्ण है। इससे नदियों में गाद जमा होने की समस्या भी कम होती है।
- जैव विविधता का संरक्षण: वृक्षारोपण स्थानीय वनस्पतियों और जीवों के लिए आवास प्रदान करता है, जिससे जैव विविधता बढ़ती है। यह नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करता है।
- प्रदूषण नियंत्रण: पेड़ हवा को शुद्ध करने में मदद करते हैं और नदी के पानी में प्रदूषकों को बहने से रोकने में भी कुछ हद तक सहायक हो सकते हैं।
- जलवायु परिवर्तन से मुकाबला: पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करके वायुमंडल से हटाते हैं, जिससे ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों को कम करने में मदद मिलती है।
- नदियों का पुनरुद्धार: नदियों के किनारों को हरा-भरा करने से उनका प्राकृतिक सौंदर्य बढ़ता है और उन्हें एक स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र में बदलने में मदद मिलती है।
उत्तर प्रदेश का ‘हरित कवच’
उत्तर प्रदेश सरकार पिछले कुछ वर्षों से वृक्षारोपण अभियानों पर विशेष जोर दे रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में, राज्य ने ‘एक पेड़ मां के नाम’ जैसे अभियानों को सफलतापूर्वक चलाया है, जिससे हरियाली में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। भारतीय वन स्थिति रिपोर्ट-2023 के अनुसार, उत्तर प्रदेश छत्तीसगढ़ के बाद दूसरा ऐसा राज्य है जहां वनाच्छादन में सुधार हुआ है।
इस साल के ‘वन महोत्सव’ का लक्ष्य और भी बड़ा है। 3.5 करोड़ पौधों का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए वन विभाग ने एक विस्तृत योजना तैयार की है। इसमें न केवल सरकारी विभाग, बल्कि स्थानीय समुदाय, किसान, स्वयंसेवी संगठन और स्कूल भी शामिल होंगे। किसानों को अपनी मेड़ों पर पेड़ लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिससे उन्हें ‘कार्बन क्रेडिट’ का भी लाभ मिल सके।
‘हरित क्रांति’ से ‘स्वच्छ जल क्रांति’ की ओर
यह अभियान केवल पेड़ लगाने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह नदियों के पुनरुद्धार के व्यापक लक्ष्य का हिस्सा है। जैसा कि मुख्यमंत्री ने कहा है, “जैसे शरीर में धमनियां होती हैं, वैसे ही धरती के लिए नदियां हैं।” नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाने और उनके किनारे हरित गलियारा बनाने से जल सुरक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता दोनों को बढ़ावा मिलेगा।
यह पहल उत्तर प्रदेश को एक हरियाली से भरपूर और जल-समृद्ध राज्य बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह दर्शाता है कि सरकार पर्यावरण के प्रति कितनी गंभीर है और कैसे जनभागीदारी से बड़े बदलाव लाए जा सकते हैं। आइए, इस ‘हरित क्रांति’ में हम सब मिलकर अपना योगदान दें और अपनी नदियों और धरती को एक बेहतर भविष्य दें।