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सेंसेक्स में भारी गिरावट: वैश्विक मंदी के डर से शेयर बाजार में हाहाकार!

भारतीय शेयर बाजार आज भारी गिरावट के साथ बंद हुआ, जहाँ बीएसई सेंसेक्स 610 अंकों की बड़ी गिरावट के साथ लुढ़का। वैश्विक बाजारों में अमेरिकी मुद्रास्फीति की चिंता और ब्याज दरों में बढ़ोतरी की संभावनाओं ने निवेशकों के बीच घबराहट पैदा कर दी, जिसका सीधा असर घरेलू बाजार पर देखने को मिला। आईटी (IT) और बैंकिंग (Banking) क्षेत्र के शेयरों को इस गिरावट में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ।

क्या हैं गिरावट के मुख्य कारण?

आज की गिरावट कई वैश्विक और घरेलू कारकों का परिणाम है:

  1. अमेरिकी मुद्रास्फीति का दबाव: संयुक्त राज्य अमेरिका में बढ़ती मुद्रास्फीति ने निवेशकों की चिंता बढ़ा दी है। यह आशंका जताई जा रही है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए ब्याज दरों में और बढ़ोतरी कर सकता है। जब विकसित देशों में ब्याज दरें बढ़ती हैं, तो विदेशी निवेशक उभरते बाजारों, जैसे कि भारत से अपना पैसा निकालना शुरू कर देते हैं, जिससे घरेलू बाजारों पर दबाव पड़ता है।
  2. वैश्विक मंदी की आशंका: ऊंची मुद्रास्फीति और बढ़ती ब्याज दरों के कारण दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं में मंदी की आशंका गहरा रही है। यदि वैश्विक मंदी आती है, तो इसका सीधा असर भारत के निर्यात और विदेशी निवेश पर पड़ेगा, जिससे कंपनियों की आय प्रभावित होगी। इस डर से निवेशक जोखिम भरी संपत्तियों, जैसे कि इक्विटी से दूर भाग रहे हैं।
  3. आईटी और बैंकिंग क्षेत्र पर दबाव: आज की गिरावट में आईटी और बैंकिंग शेयरों ने सबसे खराब प्रदर्शन किया। आईटी कंपनियों की कमाई अक्सर विकसित देशों, खासकर अमेरिका से जुड़ी होती है। वैश्विक मंदी की आशंका से आईटी सेवाओं की मांग में कमी आने का डर है, जिससे इन कंपनियों के मुनाफे पर असर पड़ सकता है। वहीं, बढ़ती ब्याज दरों और आर्थिक अनिश्चितता का असर बैंकों की ऋण वृद्धि और परिसंपत्ति गुणवत्ता पर पड़ने की आशंका से बैंकिंग शेयरों में बिकवाली देखी गई।
  4. विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) की बिकवाली: जब वैश्विक स्तर पर अनिश्चितता बढ़ती है, तो विदेशी संस्थागत निवेशक भारतीय बाजार से पूंजी निकालते हैं। यह बिकवाली बाजार में नकारात्मक धारणा को और मजबूत करती है और सूचकांकों में गिरावट लाती है।

आगे क्या?

बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले समय में वैश्विक आर्थिक आंकड़ों और केंद्रीय बैंकों की नीतियों पर निवेशकों की पैनी नजर रहेगी। विशेष रूप से, अमेरिकी फेडरल रिजर्व के आगामी फैसले और अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं से आने वाले आंकड़े बाजार की आगे की दिशा तय करेंगे।

हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के मजबूत घरेलू कारक और सरकार द्वारा किए जा रहे सुधार इसे वैश्विक झटकों से लड़ने में मदद कर सकते हैं। खुदरा निवेशकों की बढ़ती भागीदारी भी बाजार को कुछ हद तक स्थिरता प्रदान कर रही है।

फिलहाल, निवेशकों को सावधानी बरतने और बाजार के उतार-चढ़ाव पर नजर रखने की सलाह दी जाती है। यह समय धैर्य रखने और सोच-समझकर निवेश करने का है।


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