भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने हाल ही में चीन का दौरा किया है, और यह दौरा गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद किसी भारतीय विदेश मंत्री की पहली चीन यात्रा है। इस यात्रा के दौरान उन्होंने चीन के उपराष्ट्रपति हान झेंग से मुलाकात की, जिसने दोनों देशों के बीच संबंधों में “बर्फ पिघलने” के संकेत दिए हैं। यह दौरा कई मायनों में महत्वपूर्ण है और दोनों देशों के रिश्तों के भविष्य पर इसका गहरा असर पड़ने की उम्मीद है।
गलवान के बाद एक नया अध्याय?
जून 2020 में गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हुए हिंसक टकराव ने दोनों देशों के रिश्तों को एक दशक से भी अधिक समय के सबसे निचले स्तर पर पहुंचा दिया था। तब से, सीमा पर तनाव और सैन्य गतिरोध बना हुआ है, हालांकि विभिन्न स्तरों पर बातचीत जारी रही है। ऐसे में, जयशंकर की यह यात्रा राजनयिक संबंधों को सामान्य बनाने की दिशा में एक अहम कदम मानी जा रही है।
मुलाकात और संवाद पर जोर:
बीजिंग पहुंचने पर, विदेश मंत्री जयशंकर ने चीनी उपराष्ट्रपति हान झेंग से मुलाकात की। इस मुलाकात के दौरान जयशंकर ने भारत-चीन संबंधों को सामान्य करने पर जोर दिया और कहा कि इससे दोनों देशों को “पारस्परिक रूप से लाभकारी” परिणाम मिल सकते हैं। उन्होंने पड़ोसी देशों और प्रमुख वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं के रूप में खुली बातचीत और विचारों के आदान-प्रदान को महत्वपूर्ण बताया।
जयशंकर ने अपनी ‘एक्स’ पोस्ट में लिखा, “बीजिंग पहुंचने के तुरंत बाद उपराष्ट्रपति हान झेंग से मिलकर खुशी हुई। मैंने चीन की एससीओ अध्यक्षता के लिए भारत के समर्थन की बात कही। हमारे द्विपक्षीय संबंधों में सुधार को रेखांकित किया और विश्वास जताया कि इस यात्रा की चर्चाएं सकारात्मक दिशा को बनाए रखेंगी।”
कैलाश मानसरोवर यात्रा और 75वीं वर्षगांठ:
यह यात्रा ऐसे समय में हुई है जब भारत-चीन राजनयिक संबंधों की 75वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है। इस अवसर पर, जयशंकर ने कैलाश मानसरोवर यात्रा के फिर से शुरू होने को एक महत्वपूर्ण कदम बताया। यह यात्रा कोविड-19 महामारी और सीमा तनाव के कारण पांच साल तक बंद थी। उन्होंने कहा, “कैलाश मानसरोवर यात्रा का दोबारा शुरू होना भारत में बहुत सराहा जा रहा है। हमारे संबंधों का निरंतर सामान्यीकरण दोनों देशों के लिए लाभकारी हो सकता है।“
SCO बैठक में भागीदारी:
अपनी चीन यात्रा के दौरान, विदेश मंत्री शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के विदेश मंत्रियों की बैठक में भी हिस्सा लेंगे। यह बैठक विभिन्न क्षेत्रों में एससीओ सहयोग और प्रमुख अंतरराष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय मुद्दों पर विचारों का आदान-प्रदान करने का एक महत्वपूर्ण मंच है।
क्या हैं उम्मीदें?
इस यात्रा से तुरंत सीमा विवाद का समाधान होने की उम्मीद कम है, लेकिन यह निश्चित रूप से दोनों देशों के बीच उच्च स्तरीय राजनयिक संपर्क का एक महत्वपूर्ण संकेत है। यह संवाद की एक नई दिशा खोल सकता है, जिससे भविष्य में सीमा पर तनाव कम करने और अन्य द्विपक्षीय मुद्दों पर प्रगति करने में मदद मिल सकती है।
हालांकि, हमें यह भी याद रखना होगा कि भारत और चीन के बीच रिश्ते काफी जटिल हैं, जिनमें सीमा विवाद, व्यापार असंतुलन और तिब्बत जैसे मुद्दे शामिल हैं। इन सभी मुद्दों को हल करना आसान नहीं होगा, लेकिन जयशंकर की यह यात्रा एक सकारात्मक शुरुआत हो सकती है, जो दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली और बेहतर संबंधों की नींव रख सकती है।
देखना यह होगा कि इस यात्रा के बाद दोनों देश किस तरह से अपने संबंधों को आगे बढ़ाते हैं और क्या यह “बर्फ पिघलने” की शुरुआत एक स्थायी “गर्माहट” में बदल पाएगी।