ब्रेकिंग

बिहार मतदाता सत्यापन मामला: सुप्रीम कोर्ट में गरमाई बहस, लोकतंत्र के भविष्य पर नजरें!

बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) का मामला अब देश की सर्वोच्च अदालत, सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। आज यानी 10 जुलाई को इस महत्वपूर्ण मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई है, जिसने राज्य से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक सियासी हलचल तेज कर दी है।

मामला क्या है?

दरअसल, चुनाव आयोग ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण का अभियान शुरू किया है। इस अभियान के तहत बूथ लेवल अधिकारी (BLO) घर-घर जाकर मतदाताओं का सत्यापन कर रहे हैं और उनसे कई तरह के दस्तावेज मांगे जा रहे हैं। विपक्षी दल, जिसमें ‘इंडिया’ गठबंधन के नौ दल (कांग्रेस, राजद सहित) शामिल हैं, ने इस प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए हैं और इसे तुरंत रोकने की मांग की है।

विपक्ष के आरोप और याचिकाएं:

विपक्षी दलों का आरोप है कि चुनाव आयोग यह कवायद सत्तारूढ़ दल के इशारे पर कर रहा है और इसका उद्देश्य लाखों मतदाताओं, खासकर प्रवासी, गरीब और हाशिए पर पड़े लोगों को उनके मताधिकार से वंचित करना है। तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इस प्रक्रिया को “लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए सीधा खतरा” बताया। इसके बाद, अन्य राजनीतिक दलों और गैर-सरकारी संगठनों (जैसे एडीआर) ने भी याचिकाएं दायर की हैं।

याचिकाकर्ताओं के मुख्य तर्क हैं:

  • संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन: यह प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता), 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार), 325 (मतदाता सूची में धर्म, जाति, लिंग या वर्ग के आधार पर भेदभाव न होना) और 326 (वयस्क मताधिकार) का उल्लंघन करती है।
  • असंगत दस्तावेजीकरण: सत्यापन के लिए मांगे गए 11 नए दस्तावेजों में आधार और राशन कार्ड जैसे आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले आईडी शामिल नहीं हैं, जिससे लाखों लोगों को परेशानी हो रही है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है, लेकिन इसे वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने के लिए स्वीकार नहीं किया जा रहा, जबकि संविधान के अनुसार मतदाता वही हो सकता है जो देश का नागरिक हो।
  • मनमानी प्रक्रिया: यह प्रक्रिया जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1960 और निर्वाचक पंजीकरण नियम के भी खिलाफ है, और इसे मनमाने तरीके से लागू किया जा रहा है।
  • चुनाव से पहले टाइमिंग पर सवाल: सुप्रीम कोर्ट ने भी चुनाव आयोग से पूछा है कि जब विधानसभा चुनाव करीब हैं, तो इस तरह की गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया अभी क्यों शुरू की गई है, जबकि सामान्य समीक्षा हर साल होती है।

चुनाव आयोग का पक्ष:

चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी दलीलें पेश करते हुए कहा है कि मतदाता सूची में संशोधन उसका संवैधानिक दायित्व है। आयोग ने भरोसा दिलाया है कि बिना सुनवाई और उचित प्रक्रिया के किसी का भी नाम मतदाता सूची से नहीं हटाया जाएगा। आयोग का कहना है कि उसका उद्देश्य एक “शुद्ध” मतदाता सूची तैयार करना है।

अदालत की टिप्पणियां और आगे की राह:

आज की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं। कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि मतदाता सूची का पुनरीक्षण करना उसका संवैधानिक अधिकार है, इसमें कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन सवाल यह है कि इसे चुनाव से ठीक पहले क्यों किया गया? कोर्ट ने यह भी कहा कि चुनाव आयोग यह साबित करे कि याचिकाकर्ताओं के आरोप गलत हैं।

इस मामले में अभी सुनवाई जारी है और देश की निगाहें सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिकी हैं। यह मामला न केवल बिहार के चुनावों के लिए, बल्कि पूरे देश में मतदाता सूची के सत्यापन और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के भविष्य के लिए भी महत्वपूर्ण निहितार्थ रखता है। क्या सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर रोक लगाएगा, या उसे जारी रखने की अनुमति देगा? यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *