भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने एक बार फिर कांग्रेस पर अपनी “आपातकाल की मानसिकता” को उजागर करने का आरोप लगाया है। यह आरोप कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बिहार में चुनाव आयोग (ईसी) द्वारा चल रहे मतदाता सूची के पुनरीक्षण के खिलाफ किए गए विरोध प्रदर्शन के बाद आया है। भाजपा का कहना है कि कांग्रेस अतीत में भी लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करने की कोशिश करती रही है और अब भी वह उसी राह पर है।
क्या है यह विवाद?
दरअसल, बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची का ‘विशेष गहन पुनरीक्षण’ (Special Intensive Revision – SIR) अभियान चलाया जा रहा है। कांग्रेस और उसके ‘इंडिया’ गठबंधन के सहयोगी दलों का आरोप है कि इस प्रक्रिया के तहत लाखों योग्य मतदाताओं, खासकर गरीबों, प्रवासियों और हाशिए पर पड़े वर्गों को जानबूझकर मतदाता सूची से हटाया जा रहा है। राहुल गांधी और तेजस्वी यादव सहित गठबंधन के कई शीर्ष नेताओं ने इस प्रक्रिया को रोकने की मांग करते हुए बिहार में विरोध प्रदर्शन किया और सुप्रीम कोर्ट का भी रुख किया है।
भाजपा के निशाने पर कांग्रेस:
भाजपा ने कांग्रेस के इस विरोध प्रदर्शन को ‘लोकतंत्र-विरोधी’ और ‘संवैधानिक संस्थाओं को बदनाम करने’ की कोशिश बताया है। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और अन्य नेताओं ने कांग्रेस पर तीखा हमला बोला:
- “आपातकाल की मानसिकता”: भाजपा ने आरोप लगाया कि कांग्रेस आज भी 1975 में इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल की मानसिकता से ग्रस्त है। उनका कहना है कि कांग्रेस तभी संवैधानिक संस्थाओं पर विश्वास करती है जब उसके राजनीतिक हितों की पूर्ति हो। भाजपा नेताओं ने कहा कि “पीढ़ियां बदल गई हैं, लेकिन मानसिकता नहीं।”
- चुनाव आयोग पर हमला: भाजपा का तर्क है कि चुनाव आयोग एक निष्पक्ष और स्वायत्त संवैधानिक संस्था है, जिसका काम निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना और मतदाता सूची को शुद्ध करना है। कांग्रेस द्वारा इस प्रक्रिया का विरोध करना और चुनाव आयोग पर “भाजपा के लिए काम करने” का आरोप लगाना, संस्था को बदनाम करने का प्रयास है। राहुल गांधी ने तो यहां तक कह दिया कि “चुनाव आयोग को संविधान की रक्षा करनी चाहिए… वह भाजपा के निर्देशों पर काम कर रहा है।”
- “महाराष्ट्र मॉडल” का आरोप: राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि बिहार में मतदाता सूची का पुनरीक्षण “महाराष्ट्र मॉडल” का विस्तार है, जहां उनके अनुसार 2024 के विधानसभा चुनावों को “धांधली” करके भाजपा के पक्ष में मोड़ा गया था। भाजपा ने इस आरोप को सिरे से खारिज कर दिया है।
- प्रवासी मतदाताओं का मुद्दा: कांग्रेस का दावा है कि प्रवासियों, दलितों और कमजोर वर्गों के मतदाताओं को जानबूझकर हटाया जा रहा है। भाजपा का कहना है कि मतदाता सूची का पुनरीक्षण एक सामान्य प्रक्रिया है जो यह सुनिश्चित करती है कि केवल योग्य भारतीय नागरिक ही मतदान करें। उन्होंने पलटवार करते हुए पूछा कि क्या विपक्ष “घुसपैठियों” को मतदाता सूची में शामिल कराना चाहता है।
लोकतंत्र और मतदाता अधिकार का सवाल:
कांग्रेस का तर्क है कि उनका विरोध प्रदर्शन लोकतंत्र और मतदाताओं के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए है। उनका कहना है कि नई SIR प्रक्रिया के तहत आवश्यक दस्तावेज गरीबों और प्रवासियों के लिए उपलब्ध नहीं हैं, जिससे वे अपने मताधिकार से वंचित हो रहे हैं। कांग्रेस ने यह भी कहा कि चुनाव आयोग की चयन प्रक्रिया में बदलाव के बाद से उसकी विश्वसनीयता कम हुई है और अब “बीजेपी के नॉमिनेटेड इलेक्शन कमिश्नर” ही फैसला ले रहे हैं।
आगे क्या होगा?
यह विवाद बिहार विधानसभा चुनावों से ठीक पहले आया है और इसने राज्य के राजनीतिक माहौल को गरमा दिया है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई जारी है, और न्यायालय का निर्णय इस विवाद की दिशा में महत्वपूर्ण होगा। इस बीच, भाजपा और कांग्रेस दोनों ही इस मुद्दे को अपने-अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश कर रही हैं।
यह घटनाक्रम भारतीय राजनीति में संवैधानिक संस्थाओं की भूमिका और उनके प्रति राजनीतिक दलों के रवैये पर एक बड़ी बहस को फिर से सामने ला रहा है।