अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में एक बार फिर बड़ा उछाल देखने को मिला है। कीमतें बढ़कर $88 प्रति बैरल के पार पहुंच गई हैं, और इस वृद्धि का मुख्य कारण ईरान द्वारा संयुक्त राष्ट्र की परमाणु निगरानी एजेंसी (IAEA) के साथ सहयोग रोकने का फैसला है। इस कदम ने मध्य पूर्व में भू-राजनीतिक तनाव को एक बार फिर बढ़ा दिया है, जिससे वैश्विक ऊर्जा बाजारों में अस्थिरता आ गई है।
क्या हुआ है?
ईरान ने हाल ही में घोषणा की है कि वह अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के साथ कुछ प्रमुख सहयोगों को तत्काल प्रभाव से रोक रहा है। यह निर्णय ईरान और पश्चिमी शक्तियों के बीच परमाणु समझौते (JCPOA) को लेकर चल रही बातचीत में गतिरोध के बीच आया है। ईरान का कहना है कि IAEA उसकी परमाणु गतिविधियों पर अनावश्यक प्रतिबंध लगा रही है और पारदर्शिता की मांग कर रही है, जो उसकी संप्रभुता का उल्लंघन है।
बाजार पर क्या पड़ा असर?
ईरान के इस कदम से वैश्विक बाजार में चिंता बढ़ गई है:
- सप्लाई में कमी की आशंका: ईरान दुनिया के प्रमुख तेल उत्पादकों में से एक है। यदि परमाणु कार्यक्रम को लेकर तनाव बढ़ता है और ईरान पर नए या सख्त प्रतिबंध लगाए जाते हैं, तो इससे वैश्विक तेल आपूर्ति में और कमी आ सकती है। बाजार हमेशा भविष्य की आपूर्ति चिंताओं पर प्रतिक्रिया देता है।
- भू-राजनीतिक जोखिम: मध्य पूर्व में किसी भी तरह का सैन्य या राजनीतिक तनाव तेल की कीमतों को सीधे प्रभावित करता है। ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर तनाव बढ़ने से क्षेत्र में अस्थिरता और संघर्ष का जोखिम बढ़ जाता है, जिससे निवेशक घबराते हैं और तेल जैसी सुरक्षित मानी जाने वाली संपत्ति की ओर रुख करते हैं।
- मांग-आपूर्ति का असंतुलन: वैश्विक अर्थव्यवस्था में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है, जिससे तेल की मांग बढ़ रही है। ऐसे में, यदि किसी प्रमुख उत्पादक से आपूर्ति बाधित होती है, तो यह मांग-आपूर्ति के असंतुलन को और बढ़ा देता है, जिससे कीमतें ऊपर जाती हैं।
भारत पर क्या होगा असर?
भारत अपनी कच्चे तेल की जरूरतों का लगभग 85% आयात करता है। ऐसे में, कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि का सीधा असर भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है:
- पेट्रोल और डीजल महंगा: कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने से तेल कंपनियों पर दबाव बढ़ता है, और अंततः पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ सकती हैं। इससे आम आदमी की जेब पर सीधा बोझ पड़ेगा।
- महंगाई का दबाव: परिवहन लागत बढ़ने से वस्तुओं की कीमतें बढ़ेंगी, जिससे समग्र महंगाई का दबाव बढ़ जाएगा।
- चालू खाता घाटा: महंगे तेल आयात से भारत का चालू खाता घाटा (Current Account Deficit) बढ़ सकता है, जिससे रुपये पर भी दबाव पड़ सकता है।
आगे क्या?
ईरान के इस कदम ने अमेरिका और यूरोपीय देशों के सामने एक नई चुनौती खड़ी कर दी है। राजनयिक प्रयासों से तनाव कम करने और परमाणु वार्ता को फिर से पटरी पर लाने की कोशिशें की जाएंगी। हालांकि, जब तक स्थिति स्पष्ट नहीं होती, वैश्विक तेल बाजार में उतार-चढ़ाव जारी रहने की संभावना है।
निवेशकों और आम उपभोक्ताओं, दोनों को अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं पर करीब से नजर रखनी होगी, क्योंकि यह सीधे तौर पर आपकी जेब और देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकता है।